kavita
Saturday, 23 January 2021
क्षरण
पल पल
जूझते खुद से
करण ने भी किये होंगे
खुद से सवाल कुछ ऐसे ही
निःशब्द,चुपचाप;
जहां साहस जवाब दे चले
विवेक दिग्भ्रमितहो चले
सत्य दिखाते है राह
बनते हैं सम्बल
पर जहां सत्य ही मरीचिका हो
करन सदृश व्यक्तित्व का टूटना
धागे धागे में बिखरना
असम्भव नही
पल पल
No comments:
Post a Comment
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment