छोड़ते छोड़ते भी संजोए रखने की उन्हें चाहत तो है
रवायतें पहचान हैं आदत नही कि बदल जाएंगी।
उम्र भर दामन खुद का बचाके चलते रहे जिनसे
सांझ ढले परछाइयां वही बदन में सिमट आएंगी
ओस सी उड़ती हुई बूंदों पे बात आती है
हमको खोती हुई रवायतों की याद आती है
वक़्तकी दौडमे छूटी वो खनक याद आती है
गुम होने को मजबूर कोई पहचान यादआती ह
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